Guru Stotram: गुरुवार का दिन हमारे जीवन में विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान विष्णु, जो कि जगत के पालनहार हैं, और देवगुरु बृहस्पति की पूजा-अर्चना का दिन है। हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है, और गुरुवार का दिन हमें आध्यात्मिकता और समृद्धि की ओर अग्रसर करने का अवसर प्रदान करता है।
गुरुवार व्रत का फल
गुरुवार का व्रत न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में शुभ फल की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय भी है। यदि आप अपनी कुंडली में गुरु ग्रह को मजबूत करना चाहते हैं, तो गुरुवार का व्रत करना बेहद फलदायी हो सकता है। जब कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है, तो जीवन में खुशियों का आगमन होता है और आय एवं सौभाग्य में वृद्धि होती है।
गुरु कवच और बृहस्पति कवच का महत्व
गुरुवार के दिन गुरु कवच और बृहस्पति कवच का पाठ करना आपके जीवन के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकता है। यह न केवल गुरु ग्रह की कृपा को बढ़ाता है, बल्कि आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। इस पाठ के माध्यम से आप अपने कार्यों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं को पार कर सकते हैं।
अंत में
गुरुवार के दिन भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा करना और व्रत रखना आपको मानसिक और भौतिक दोनों प्रकार की समृद्धि का अनुभव कराने में सहायक हो सकता है। अपने जीवन में सकारात्मकता और खुशियों को बढ़ाने के लिए इस दिन को विशेष रूप से आराधना का दिन मानें और गुरु कवच तथा बृहस्पति कवच का पाठ करें।
इस प्रकार, गुरुवार का दिन आपके लिए आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का एक सुनहरा अवसर है। इसे ध्यान में रखते हुए, इस दिन की आराधना को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाएं।
गुरु स्तोत्र (Guru Stotram Lyrics)
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु स्तोत्र (Guru Stotram Lyrics)
गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।
ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥
बृहस्पति कवच (Brihaspati Kavach Lyrics)
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम् ।
अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥
बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।
कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः ॥
जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः ॥
भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।
स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥
नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।
कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥
जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।
अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
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