गणेश जी की आरती: सुखकर्ता, दुःखहर्ता और विघ्न विनाशक जानिए इस प्रसिद्ध आरती का महत्व! (Ganesh ji bhajan lyrics)

Ganesh ji bhajan lyrics: भगवान गणेश की उपासना हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। उनकी आराधना का खास महत्व है, विशेषकर प्रत्येक बुधवार और चतुर्थी तिथि को। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। उन्हें “विघ्नहर्ता” के रूप में पूजा जाता है, जो सभी विघ्नों को दूर करने का काम करते हैं।

गणेश जी की आरती का पाठ न केवल भक्तों के मन में श्रद्धा का संचार करता है, बल्कि उन्हें भक्ति के अद्भुत अनुभव में भी ले जाता है। यह आरती साधकों को विशेष फल देती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाने का मार्ग प्रशस्त करती है।

आरती में भगवान गणेश के गुणों का वर्णन किया गया है, जो भक्तों को प्रेरित करता है। शास्त्रों में गणेश जी को समर्पित कई प्रभावशाली मंत्रों का उल्लेख है, जिनका जप करने से सभी समस्याएँ हल होती हैं।

भगवान गणेश की आरती करना सिर्फ एक धार्मिक प्रथा नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहां भक्त अपने हृदय की गहराइयों से गणेश जी के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।

आइए, हम सभी मिलकर इस आरती का आनंद लें और भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करें, जिससे हमारे जीवन में सुख और समृद्धि का संचार हो!

सुखकर्ता दुःखहर्ता आरती (Ganesh ji aarti)

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।

नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।

सर्वांगी सुन्दर उटि शेंदुराची।

कण्ठी झळके माळ मुक्ताफळांची।।

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।

दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।।

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा।

चन्दनाची उटि कुंकुमकेशरा।

हिरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा।

रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया।।

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।

दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।।

लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बन्धना।

सरळ सोण्ड वक्रतुण्ड त्रिनयना।

दास रामाचा वाट पाहे सदना।

संकटी पावावे निर्वाणीरक्षावे सुरवरवन्दना।।

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।

दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।।

जरूर करें श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र का जाप
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।

भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ।।

प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।

तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ।।

लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।

सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ।।

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ।।

जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।

संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।

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