Indira Ekadashi katha 2024: इंदिरा एकादशी व्रत की अद्भुत कथा: सुनने भर से मिलता है संपूर्ण फल और मोक्ष का आशीर्वाद!सनातन धर्म में इंदिरा एकादशी का व्रत अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। साल में 24 एकादशी तिथियाँ आती हैं, जिनमें हर एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है। पंचांग के अनुसार, इस साल आश्विन माह की इंदिरा एकादशी 29 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस व्रत (Indira Ekadashi 2024) को रखने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
Indira Ekadashi 2024: भगवान विष्णु की आराधना का पवित्र दिन
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। यह दिन पूरी तरह से भगवान विष्णु की पूजा और उपासना के लिए समर्पित होता है। इस दिन, भक्त विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। एकादशी महीने में दो बार आती है, लेकिन आश्विन माह की इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पितृ पक्ष के दौरान आती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर को रखा जाएगा। जैसे-जैसे इस पावन व्रत का समय नजदीक आ रहा है, आइए इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा (Indira Ekadashi Katha) के बारे में जानते हैं।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat 2024 Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मती नगरी के राजा इंद्रसेन का राज्य बेहद समृद्ध था। राजा को सभी सांसारिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त थीं। एक दिन, नारद मुनि राजा इंद्रसेन की सभा में पहुंचे और उनके मृत पिता का संदेश सुनाया। नारद जी ने बताया कि राजा के पिता यमलोक में मुक्ति नहीं पा सके हैं, क्योंकि उनके जीवनकाल में एकादशी का व्रत भंग हो गया था। इसी कारण से वे अभी तक यमलोक में भटक रहे हैं और मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके हैं।
राजा इंद्रसेन ने यह सुनकर बहुत दुखी होकर नारद जी से अपने पिता को मोक्ष दिलाने का उपाय पूछा। नारद मुनि ने सलाह दी कि यदि राजा आश्विन माह की इंदिरा एकादशी का व्रत पूरी विधि-विधान से करेंगे, तो उनके पिता को सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी और उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।
Indira Ekadashi 2024: व्रत का संकल्प और पितरों की मुक्ति
राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि के सुझाव को मानते हुए इंदिरा एकादशी का व्रत विधिवत रूप से किया। उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा की, पितरों का श्राद्ध किया, ब्राह्मण भोज करवाया और अपनी क्षमता अनुसार दान-पुण्य भी किया। इस व्रत के फलस्वरूप राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे बैकुंठ धाम चले गए। इतना ही नहीं, राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम का आशीर्वाद मिला। यही कारण है कि आज भी भक्तजन इस व्रत को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ करते हैं, ताकि उनके पितरों को मुक्ति और शांति प्राप्त हो सके।
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इस लेख में दिए गए उपाय, लाभ और सलाह सामान्य जानकारी के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। aapkashubhchintak.com इस लेख में व्यक्त किसी भी दावे या कथन का समर्थन नहीं करता है। इस जानकारी का स्रोत विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, ज्योतिषीय मान्यताओं और प्रवचनों से लिया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इस जानकारी को अंतिम सत्य न मानें और अपने विवेक का प्रयोग करें।
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